मौर्य साम्राज्य का इतिहास
(322 से 184 ई.पू.)
मौर्य साम्राज्य \ चन्द्रगुप्त मौर्य \ बिन्दुसार \ अशोक \ कलिंग युद्ध |
मौर्य वंश का संस्थापक कौन था
➥ मौर्य राजवंश के विषय में हमें विभिन्न स्रोतों से जानकारी मिलती है
साहित्य
➥ ब्राह्मण साहित्य में पुराण कौटिल्य कृत अर्थशास्त्र, विशाखदत्त का मुद्राराक्षस कथासरित्सागर (सोमदेव), वृहत्कथामंजरी (क्षेमेन्द्र) तथा महाभाष्य (पतंजलि) आदि जानकारी मिलती है
➥ इनमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण " अर्थशास्त्र " है जो मौर्य प्रशासन के अतिरिक्त चन्द्रगुप्त मौर्य के व्यक्तित्व पर भी प्रकाश डालता है
➥ बौद्ध ग्रथों में दीपवंश, महावंश टीका, महाबोधि वंश, दिव्यावदान आदि महत्वपूर्ण ग्रन्थ है जो मौर्य साम्राज्य के विषय में महत्वपूर्ण जानकारी देते है
➥ जैन ग्रन्थों में प्रमुख स्रोत ग्रन्थ है - भद्रबाहु का कल्पसूत्र एवं हेमचन्द्र के परिशिष्ट पर्वन |
विदशी विवरण
➥ स्ट्रैबो, कर्टियस, डिओडोरस, प्लिनी, एरियन जस्टिन, प्लूटार्क, निर्याकस, अनेसिक्रिटस व अरिस्टोबुलस आदि यूनानी क्लासिकल लेखकों के विवरण |
➥ स्ट्रेबो एवं जस्टिस ने चन्द्रगुप्त मौर्य को " सैण्ड्रोकोट्स " एरियन तथा प्लूटार्क ने एण्ड्रोकोट्स तथा फिलार्कस ने " सैण्ड्रोकोट्स " कहा है
➥ सर्वप्रथम विलियम जोन्स ने ही सैण्ड्रोकोट्स की पहचान चन्द्रगुप्त मौर्य से की है
पुरातत्व
➥ इस काल के पुरातात्विक साक्ष्यों में अशोक के अभिलेख अत्यधिक महत्वपूर्ण है | इन अभिलेखों से हमें अशोक के शासन काल की समस्त जानकारी मिलती है
➥ अशोक के अभिलेख के अतिरिक्त शक महाक्षत्रप रुद्रदामन के जूनागढ़ लेख, काली पालिश वाले मृदभाण्ड तथा चाँदी व ताँवे के पंचमार्क (आहत सिक्के) से भी मौर्य कालीन इतिहास की जानकारी मिलती है
मौर्य साम्राज्य का प्रथम शासक कौन था?
1. चन्द्रगुप्त मौर्य (322 - 298 ई.पू.)
➥ अपने गुरु चाणक्य की सहायता से अंतिम नन्द शासक घनानन्द को पराजित कर 25 वर्ष की आयु में चन्द्रगुप्त मौर्य ने मौर्य साम्राज्य की स्थापना की
➥ ब्राह्मण साहित्य (पुराणादि) चन्द्रगुप्त मौर्य की शूद्र, बौद्ध एवं जैन ग्रन्थ क्षत्रिय तथा विशाखदत्त कृत मुद्राराक्षस वृषल (निम्न कुल) कुल का है
➥ यूनानी लेखक प्लूटार्क के अनुसार " उसने (चन्द्रगुप्त) 6 लाख की सेना लेकर सम्पूर्ण भारत को रौंद डाला और उस पर अधिकार कर लिया "
जस्टिन ने भी इसी प्रकार के विचार प्रकट किये है |
➥ 305 ई.पू. में चन्द्रगुप्त ने तत्कालीन यूनानी शासक सेल्यूकस निकेटर को पराजित किया | संधि हो जाने के पश्चात सेल्यूकस ने चन्द्रगुप्त से 500 हाथी लेकर बदले में एरिया (हेरात), अराकोसिया (कांधार), जेड्रोसिया एवं पेरोपनिसडाई (काबुल) के क्षेत्रों के कुछ भाग दिये |
➥ दोनों देशों के बीच वैवाहिक संबंध स्थापित हुआ | सेल्यूकस ने अपनी पुत्री का विवाह चन्द्रगुप्त से करके उपर्युक्त चारों प्रान्त दहेज के रूप में दिये तथा मेगस्थनीज को अपने राजदूत के रूप में चन्द्रगुप्त के दरबार में भेजा | चन्द्रगुप्त और सेल्यूकस के युद्ध का वर्णन एप्पियानस ने किया है |
➥ चन्द्रगुप्त मौर्य का साम्राज्य उत्तर पश्चिम में ईरान (फारस) से लेकर पूर्व में बंगाल तक उत्तर में कश्मीर से लेकर दक्षिण में उत्तरी कर्नाटक (मैसूर) तक फैला हुआ था
➥ चन्द्रगुप्त मौर्य की दक्षिण भारत की विजय के विषय में जानकारी तमिल ग्रन्थ " अह्नानुर " एवं " मुरनानुर " तथा अशोक के अभिलेखों से मिलती है |
➥ बंगाल पर चन्द्रगुप्त की विजय महास्थान अभिलेख से प्रकट होता है
➥ अपने जीवन के अंतिम चरण में पुत्र के पक्ष में सिंहासन छोड़कर चन्द्रगुप्त मौर्य ने जैनमुनि भद्रबाहु से जैन धर्म की दीक्षा ले ली और श्रवणवेलगोला (मैसूर) जाकर 298 ई.पू. में उपवास द्वारा शरीर त्याग दिया
➥ जैन लेखों के अनुसार चन्द्रगुप्त मौर्य के शासन काल के अन्त में मगध में 12 वर्षों का भीषण अकाल पड़ा था |
2. बिन्दुसार (298 ई.पू. से 272 ई.पू.)
➥ चन्द्रगुप्त मौर्य के पश्चात उसका पुत्र बिन्दुसार गद्दी पर बैठा | यूनानी लेखों में इसे अमित्रोचेट्स (जिसका संस्कृत रूपान्तरण अमित्रघात है) वायुपुराण में मद्रसार तथा जैन ग्रंथों में सिंहसेन कहा गया है |
➥ बिन्दुसार के समय में भी पश्चिमी यूनानी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध कायम रहा | डायमेकस तथा डायोनिसस दो विदेशी राजदूत उसके दरवार में आये
➥ स्ट्रैबो के अनुसार सीरिया शासक एण्टियोकस ने डायमेकस नामक अपना एक राजदूत बिन्दुसार के दरबार में भेजा था |
➥ प्लिनी के अनुसार मिस्त्र के शासक टालमी द्व्तीय फिलडेल्फस डायनोसियस नामक एक राजदूत मौर्य दरबार में भेजा था |
➥ एथीनियस नामक एक अन्य यूनानी लेखक ने बिन्दुसार तथा सीरिया के शासक एण्टियोकस प्रथम के बीच मैत्रीपूर्ण पत्र व्यवहार का विवरण दिया है, जिसमें भारतीय शासक ने तीन वस्तुओं की मांग की थी -
1. मीठी मदिरा
2. सूखी अंजीर
3. एक दार्शनिक
➥ सीरियाई सम्राट ने दो (मीठी मदिरा तथा सुखी अंजीर) वस्तु भिजवा दी परन्तु तीसरी वस्तु अर्थात दार्शनिक के सम्बन्ध यह कहला भेजा कि यूनानी कानून के अनुसार दार्शनिकों का विक्रय नहीं किया जा सकता
➥ दिव्यावदान के अनुसार बिन्दुसार के समय में तक्षशिला (प्रान्त) में दो विद्रोह हुए जिसका दमन करने के लिए पहली बार सुसीम को तथा दूसरी बार अशोक को भेजा गया |
➥ बिन्दुसार आजीवक संप्रदाय का अनुयायी था | दिव्यावदान से पता चला है कि उसकी राजसभा में आजीवक संप्रदाय का एक ज्योतिषी निवास करता था
मौर्य वंश का सबसे महान शासक कौन था?
3. अशोक (273 ई.पू. से 232 ई.पू.)
➥ जैन अनुश्रुति के अनुसार अशोक ने बिन्दुसार की इच्छा के विरुद्ध मगध के शासन पर अधिकार कर लिया
➥ सिंहली अनुश्रुति के अनुसार अशोक ने अपने 99 भाइयों की हत्या करके सिंहासन प्राप्त किया |
➥ महाबोधिवंश तथा तारानाथ के अनुसार सत्ता प्राप्ति के लिए हुए गृह युद्ध में अपने भाइयों का वध करके ही अशोक साम्राज्य प्राप्त किया | लगभग चार वर्ष के सत्ता संघर्ष के बाद अशोक का विधिवत राज्याभिषेक 269 ई.पू. में हुआ |
➥ अशोक के जीवन की प्रारंभिक जानकारी हमें बौद्ध ग्रंथों जैसे दिव्यावदान व सिंहली अनुश्रुति से मिलती है
➥ दक्षिण भारत से प्राप्त मास्की एवं गुर्जरा अभिलेखों में उसका नाम अशोक तथा पुराणों में " अशोक बर्धन " मिलता है | अभिलेखों में अशोक ईरानी शैली (दारा प्रथम) में " देवानामप्रिय " तथा " दे वानाम पियदस्सी " उपाधियों से विभूषित है |
➥ राज्याभिषेक से पूर्व अशोक उज्जैन राज्यपाल था |
➥ अशोक ने कश्मीर में वितस्ता नदी के किनारे श्री नगर नानक नगर की स्थापना की |
➥ अशोक द्वारा उत्कीर्ण कराये गये अभिलेखों में उसकी एक ही रानी कारुवाकी का उल्लेख मिलता है
➥ कलिंग युद्ध - राज्याभिषेक के आठवें वर्ष (261 ई.पू.) में अशोक ने कलिंग पर आक्रमण किया | इस युद्ध में एक लाख लोग मारे गये तथा एक लाख पचास हजार लोग बन्दी बनाये गये |
➥ कलिंग के हाथीगुम्फा अभिलेख में प्रकट होता है की सम्भवत: उस समय कलिंग पर नन्दराज नाम का राजा राज्य कर रहा था
➥ कलिंग युद्ध तथा उसके परिणामों के विषय में अशोक के तेरहवें शिलालेख से विस्तृत सुचना प्राप्त होती है | विजयोपरांत कलिंग में दो अधीनस्थ प्रशासनिक केंद्र स्थापित किये गये :-
1. उत्तरी केंद्र (राजधानी तोसलि)
2. दक्षिणी केंद्र (राजधानी जौगढ़)
➥ प्लिनी के अनुसार अशोक ने कलिंग को व्यापार - व्यवसाय की दृष्टि से महत्पूर्ण समझकर इस पर आक्रमण किया |
➥ कौटिल्य के अर्थशात्र के अनुसार कलिंग हाथियों के लिए प्रसिद्ध था | इन्हीं हाथियों को प्राप्त करने के लिए अशोक ने कलिंग पर आक्रमण किया था |
➥ अशोक के अभिलेखों से यह स्पष्ट होता है कि उसका साम्राज्य उत्तर - पश्चिम सीमा प्रान्त (अफगानिस्तान) दक्षिण में कर्नाटक पश्चिम में काठियावाड़ एवं पूर्व में बंगाल की खाड़ी तक फैला था |
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