जैन धर्म
जैन धर्म \ जैन धर्म के 24 तीर्थकर \प्रमुख जैन संगीतियां सल्लेखना \ जैन धर्म का विभाजन \ विपश्यना |
जैन धर्म का संस्थापक कौन है?
1. जैन धर्म को संगठित व विकसित करने का श्रेय महावीर स्वामी को दिया जाता है तथापि ये इस धर्म के संस्थापक नहीं थे
जैनधर्म की स्थापना के श्रेय जैनियों के प्रथम तीर्थकर ऋषभदेव जाता है
2. जैन शब्द संस्कृत के जिन शब्द से बना है जिसका अर्थ विजेता (जितेन्द्रिय) है जैन अनुयायी को निर्ग्रन्थ (बन्धन रहित) तथा जैन धर्म के अधिष्ठाता को तीर्थकर कहा गया
3. जैन धर्म के प्रथम तीर्थकर ऋषभदेव या आदिनाथ थे ऋषभदेव व अरिष्टनेम का उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है
जैन धर्म की स्थापना कब और किसने की?
पार्श्वनाथ
- जन्म :- महावीर स्वामी के जन्म से 250 ई० पूर्व
- पिता :- अश्वसेन (काशी के राजा)
- माता :- वामादेवी (कुशस्थल के राजा नरवर्मन की पुत्री)
- पत्नी :- प्रभावती (कुशस्थल की राजकुमारी)
1. जैन धर्म के 23 वें तीर्थकर पार्श्वनाथ थे पार्श्वनाथ को झारखण्ड के गिरिडीह जिले में सम्मेत शिखर (पारसनाथ पहाड़ी) पर ज्ञान प्राप्ति हुई थी
2. जैन ग्रंथों में पार्श्वनाथ को पुरुषादनीयम (महान पुरुष) कहा गया है इनके अनुयायियों को निर्ग्रन्थ (सांसारिक बन्धनो से मुक्त) कहा जाता था
3. पार्श्वनाथ को 100 वर्ष की आयु में " सम्मेद पर्वत " पर निर्माण प्राप्त हुआ
4. पार्श्वनाथ द्वारा प्रतिपादित 4 संकल्प - सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह तथा अस्तेय
महावीर स्वामी
1. महावीर स्वामी को जैनियों के 24 वें तीर्थकर एवं जैन धर्म के वास्तविक संस्थापक माने जाते है
2. महावीर का जन्म वैशाली के निकट कुण्डग्राम (वज्जिसंघ का गणराज्य) के ज्ञातृक कुल के प्रधान सिद्धार्थ के यहाँ 540 ई.पू. में हुआ था इनकी माता का नाम त्रिशला था जो लिच्छवि राजकुमारी थी तथा इनकी पत्नी का नाम यशोदा था
3. यशोदा से जन्म लेने वाली महावीर की पुत्री " प्रियदर्शना " का विवाह जामालि नामक क्षत्रिय से हुआ, वह महावीर का प्रथम शिष्य था
4. 30 वर्ष की अवस्था में महावीर ने गृहत्याग किया
5. 12 वर्ष तक लगातार कठोर तपस्या एवं साधना के बाद 42 वर्ष की अवस्था में महावीर को जुम्भिकग्राम के समीप ऋजुपालिका नदी के किनारे एक साल वृक्ष के नीचे कैवल्य (सर्वोच्च ज्ञान) प्राप्त हुआ
6. कैवल्य प्राप्त हो जाने के बाद महावीर स्वामी को केवलिन, जिन (विजेता), अर्ह (योग्य) एवं निर्ग्रन्थ (बन्धन रहित) जैसी उपाधियाँ मिली उनकी मृत्यु पावापूरी में 72 वर्ष की उम्र में 468 ई.पू. में हुई
जैन धर्म के 24 तीर्थकर
तीर्थकर :- जैन धर्म में उसके संस्थापक एवं जितेन्द्रिय तथा ज्ञान प्राप्त महात्माओं की उपाधि थी
1. ऋषभदेव (आदिनाथ) 2. अजितनाथ 3. सम्भवनाथ
4. अभिनन्दन 5. सुमतिनाथ 6. पद्मप्रभु
7. सुपार्श्वनाथ 8. चंद्रप्रभु 9. सुविधिनाथ
10. शीतलनाथ 11. श्रेयांसनाथ 12. वासुमूल
13. विमलनाथ 14. अनंतनाथ 15. धर्मनाथ
16. शांतिनाथ 17. कुन्थुनाथ 18. अरनाथ
19. मल्लिनाथ 20. मुनिसुब्रत 21. नमिनाथ
22. अरिस्टनेमि 23. पार्श्वनाथ 24. महावीर स्वामी
सल्लेखना क्या है
1. जैन धर्म में बिना खाये पिए प्राण त्यागना सल्लेखना विधि कहलाता है
2. तीसरी सदी में सम्राट चंद्र गुप्त मौर्य ने श्रावण बेलगोला (कर्नाटक) में सल्लेखना विधि द्वारा ही अपने प्राण का त्याग किया
2. प्रमुख जैन संगीतियां (सम्मेलन)
1. प्रथम जैन संगीति 300 ई.पू में पाटिलपुत्र (बिहार) आयोजित हुई इसके अध्यक्ष स्थूलभद्र थे
2. द्वितीय जैन संगीति 512 ई.पू में वल्लभी (गुजरात) आयोजित हुई इसके अध्यक्ष क्षमाश्रमण थे
जैन धर्म का विभाजन
1. कालान्तर में जैन धर्म दो समुदायों मेंविभाजित हो गया
1. तेरापंथी (श्वेताम्बर)
2. समैया (दिगम्बर)
2. भद्रबाहु एवं उनके अनुयायियों को दिगम्बर कहा गया | ये दक्षिणी जैनी कहे जाते थे
ये नग्न रहते थे
3. स्थूलभद्र एवं उनके अनुयायियों को श्वेताम्बर कहा गया | श्वेताम्बर सम्प्रदाय के लोगों ने ही सर्वप्रथम महावीर एवं अन्य तीर्थकरों (पार्श्वनाथ) की पूजा आरम्भ की
ये सफेद वस्त्र धारण करते थे
पंच महाव्रत
1. अहिंसा------------------------ जीव की हिंसा न करना
2. सत्य -------------------------- सदा सत्य का मधुर बोलना
3. अपरिग्रह --------------------- संपत्ति ग्रहण न करना
4. अस्तेय ----------------------- चोरी न करना
5. ब्रह्मचर्य --------------------- इन्द्रिय निग्रह करना
त्रिरत्न (मोक्ष - कैवल्य की प्राप्ति हेतु)
1. सम्यक ज्ञान :- वास्तविक ज्ञान
2. सम्यक दर्शन :- सत्य में विश्वास
3. सम्यक चरित्र :- इंद्रियों व कर्मों पर पूर्ण नियंत्रण
जैन धर्म की प्रमुख मान्यताएं
1. जैन धर्म में अहिंसा पर विशेष बल दिया गया है इसमें कृषि व युद्ध में भाग लेने पर प्रतिबंध लगाया गया है
2. जैन धर्म पुनर्जन्म व कर्मवाद में विश्वास करता है उसके अनुसार कर्मफल ही जन्म तथा मृत्यु का कारण है
3. बौद्ध धर्म की तरह जैन धर्म में वर्ण व्यवस्था की निंदा नहीं की गई है
4. जैन धर्म संसार की वास्तविकता की स्वीकार करता है पर सृष्टिकर्त्ता के रूप ईश्वर को नहीं स्वीकारता है
5. जैन धर्म में देवताओं के अस्तित्व को स्वीकार किया गया है किंतु उनका स्थान जिन से नीचे रखा गया है
6. जैन धर्म के ग्रन्थ अर्द्धमगधी में लिखे गए
7. भद्रबाहु ने कल्पसूत्र को संस्कृति में लिखा
8. प्रमेय कमलमार्तण्ड की रचना प्रभाचन्द्र ने की
9. भगवतीसूत्र महावीर के जीवन पर प्रकाश डालता है तथा इसमें 16 महाजनपदों का उल्लेख मिलता है
10. महावीर ने प्राकृत भाषा में धर्म का प्रचार किया तथा जैन धर्म के प्रचार के लिए पावापुरी में एक जैन संघ की स्थापना किया गया था
जैन धर्म के प्रमुख तीर्थ स्थल
अयोध्या :- जैन परंपरा में अयोध्या का अत्यंत महत्व है | यहां 5 तीर्थकर ने जन्म लिया, जिसमें प्रथम तीर्थकर ऋषभदेव का नाम विशेष उल्लेखनीय है
श्रावस्ती :- उत्तर प्रदेश में ही स्थित यह तीर्थ तीसरे तीर्थकर संभवनाथ जी की जन्मभूमि है इसे सहेत महेत भी कहते है
कौशांबी :- इलाहाबाद - कानपुर के बीच स्थित इस स्थान पर 6 वें तीर्थकर पद्मप्रभु का जन्म हुआ यही प्रभास नामक पर्वत पर उन्होंने तप किया
विपश्यना क्या है ?
विपश्यना पालि भाषा का शब्द है जिसका अर्थ गहराई से अपने भीतर देखना है यह भारत की प्राचीन ध्यान विधि है इसके द्वारा कोई भी साधक राग द्वेष, भय, मोह, लालच, विकारों, दैनिक जीवन के तनावों और मानसिक बंधनो से मुक्त हो जाता है वह जीवन में आने वाली समस्याओं का सफलतापूर्वक हल खोजने में सफल होता है मुश्किल परिस्थितियों में डटे रहने और उनके समाधान करने की क्षमता उसमें आ जाती है जब हम किसी वस्तु या परिस्थितियों को टुकड़ों में बांटकर उसे बाहर से या दूर से देखते है, तब पता चलता है कि जो जैसा दिखता है, वास्तव में वैसा होता नहीं है | ऊपरी तौर पर महसूस होने वाला उसका स्वरूप आभासी सत्य जैसा है इसका पता चलते ही साधक आभासी सत्य के कारण से पैदा होने वाली भावनाओं से बाहर आने लगता है, और इसके प्रभाव से शरीर, मन, वाणी और कर्म सुधरने लगते है
जैसे जैसे इनमें सुधार आने लगता है, वैसे - वैसे साधक मानसिक तनावों से मुक्त होने लगता है| अपने भीतर शांति का अनुभव करने लगता है इससे चित्त से संबंध रखने वाले कई रोग समाप्त होने लगते है इसकी खोज 2500 वर्ष पूर्व गौतम बुद्ध ने किया था बर्मा में विपश्यना को पीढ़ी संभालकर रखने वाले सयाजी उबा खिन ने 1968 में व्यवसायी सत्यनारायण गोयनका को विपश्यना को भारत ले जाने के लिए अधिकृत किया था