सिन्धु (हड़प्पा) सभ्यता के प्रमुख्य स्थल | वास्तुकला | कृषि | व्यापार - वाणिज्य | अन्य नगर

 सिन्धु (हड़प्पा) सभ्यता के प्रमुख्य स्थल 

बनवाली | सुरकोटदा | रंगपुर | कोटदीजी | धौलावीरा 

सिन्धु (हड़प्पा) सभ्यता के प्रमुख्य स्थल


बनवाली 


1. हरियाणा के हिसार जिले में स्थित इस पुरास्थल की खोज आर. एस. विष्ट ने 1973 में की थी 

2. मिट्टी के उत्कृष्ट बर्तन, सेलखड़ी की अनेक मुहरें और सिन्धु सभ्यता कालीन विशिष्ट लिपि से युक्त मिट्टी की पकाई गई कुछ मुहरें मिली हैं 

3. बनवाली से प्राप्त कुछ प्रमुख्य अवशेष 

  •  हल की आकृति (खिलौने के रूप में) 
  • तिल 
  • सरसों का ढेर 
  • अच्छे किस्म के जौ 
  • सड़कें 
  • नालियों के अवशेष 
  • मनके 
  • मातृदेवी की लघुमृण्मूर्तियाँ  
  • ताँबे के बाणाग्र 
  • मनुष्यों एवं पशुओं की  मूर्तियाँ 
  • चर्ट के फलक 
  • सेलखड़ी एवं पकाई मिट्टी की मुहरें 


सुरकोटदा 


1.  गुजरात के कच्छ जिले में स्थित है इस स्थल की सर्वप्रथम खोज जगपति जोशी ने 1964 में की थी यह स्थल सैन्धव संस्कृति के पतन काल को दृष्टिगत करता है 

2. सुरकोटदा एक महत्पूर्ण प्राचीर युक्त सिन्धु कालीन महत्पूर्ण बस्ती है 

3. इस स्थल के अंतिम स्तर पर घोड़े की अस्थियाँ मिली हैं जो किसी भी अन्य हड़प्पा कालीन स्थल से प्राप्त नहीं हुई हैं 

4. सुरकोटदा  से प्राप्त कुछ प्रमुख्य अवशेष 

  • घोड़े की अस्थियाँ 
  • एक विशेष प्रकार का कब्रगाह 

रंगपुर 


1. रंगपुर स्थल अहमदाबाद जिले में स्थित है इसकी खोज 1931 में एम. एस. वत्स तथा 1953 में एस. आर. राव ने की थी 

2. रंगपुर से प्राप्त कुछ प्रमुख्य अवशेष 

  • धान की भूसी के ढेर 
  • कच्ची ईटों  दुर्ग 
  • नालियाँ 
  • मृदभाण्ड 
  • पत्थर के फलक 

कोटदीजी 

1. सिन्ध प्रान्त के खैरपुर स्थित इस स्थल की सर्वप्रथम खोज धुर्ये ने 1935 में की थी 

2. 1955 से फजल अहमद खान ने इसकी नियमित खुदाई कराई थी 

धौलावीरा 

1. गुजरात के कच्छ जिले के भचाऊ तालुक में स्थित धौलावीरा आज एक साधारण गाँव है इसकी खोज 1990 - 91 में आर. एस. विष्ट ने की थी 

2. धौलावीरा वर्तमान भारत में खोजे गये हड़प्पा कालीन दो विशालतम नगरों में से एक है दूसरा विशालतम नगर हरियाणा में स्थित राखीगढ़ी है 

3. धौलावीरा भारतीय उपमहाद्वीप का चौथा विशालत हड़प्पाकालीन नगर है तीन अन्य नगर - मोहनजोदड़ों, हड़प्पा एवं गनेड़ीवाल (बहावलपुर)


अन्य नगर 

1. मुंडीगाक नामक हड़प्पाकालीन पुरास्थल अफगानिस्तान  है 

2. माँडा - पीर पंजाल पर्वतमाला की तराई में चिनाव नदी  के दांये तट पर (जम्मू) स्थित है 

3. रोपड़ - पंजाब के सतलज नदी के तट पर स्थित है 

4. आलमगीरपुर उ.प्र. के मेरठ जिले में स्थित आलमगीरपुर यमुना की सहायक हिण्डन नदी के बायें तट पर स्थित है 



वास्तुकला 

1. भवन निर्माण की कला की वास्तुकला कहा जाता है भारत में वास्तुकला क आरंभ सिंधुवासियों ने किया था 

2. सिंधु सभ्यता एक नगरीय सभ्यता थी और इस सभ्यता के नगरों के अवशेषों से नगर - विन्यास का परिचय मिलता है नगर की रक्षा के लिए उसके चारों ओर मजबूत प्राचीर बनाया जाता था सड़कें एक दूसरे को समकोण पर काटती हुई चौड़ी बनायीं जाती थी जिनके किनारे नालियों की उत्तम व्यवस्था थी 

3. घरों का निर्माण एक सीध में सड़कों के किनारे व्यवस्थित रूप में किया जाता था, जिनके दरवाजे गलियों या सहायक सड़कों की ओर खुलते थे 
भवन 2 मंजिले भी थे घरों में कई कमरे, रसोईघर, स्नानघर तथा बीच में आंगन की व्यवस्था थी 


कृषि 


1. वे चावल के उत्पादन से परिचित थे चावल के उत्पादन का साक्ष्य लोथल रंगपुर से मिले हैं 

2. गन्ना का कोई साक्ष्य नहीं मिला है लोथल एवं सौराष्ट्र से बाजरे की खेती एवं रोजदी (गुजरात) से रागी के विषय में साक्ष्य मिले है 

3. विश्व में कपास उगाने वालों में सिन्धुवासी प्रथम थे इसलिए मेसोपोटामिया में कपास के लिए सिंधु शव्द का प्रयोग किया जाने लगा तथा यूनानियों ने इसे सिंडन कहा, जो सिंधु शव्द का ही यूनानी रूपांतर था 

4. सिन्धुवासी हल के प्रयोग से परिचित थे कालीबंगा से हल से जुते हुए खेत था उनमें सरसों के साक्ष्य मिले हैं 

5. पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में बहावलपुर जिले में स्थित चोलिस्तान भारत के हरियाणा राज्य के फतेहाबाद जिले में स्थित बणावली से मिट्टी का बना हुआ खिलौना हल मिला था 


कृषि

1. सिन्धुवासी हाथी घोड़े से परिचित तो थे लेकिन वे उन्हें पालतू बनाने में सफल नहीं हो सके थे क्योंकि हाथी व घोड़े पालने के साक्ष्य प्रमाणित नहीं हो सके हैं 

2. सुरकोटदा से घोड़े के अस्थि पंजरराणाघुंडई से घोड़े के दांत (जबड़ा) के अवशेष मिले है लोथल व रंगपुर से घोड़े की मृण्मूर्तियां मिली हैं 

3. सिन्धुवासी को गैंडा (भारतीय गैंडा का एकमात्र प्रमाण) आमरी से मिला 
बंदर, भालू, खरहा जंगली जानवरों का भी ज्ञान तह इस  की पुष्टि मुहरों, ताम्र तश्तरियों पर अंकित इनके चित्रों से होती है 

4. शेर का कोई साक्ष्य नहीं मिला था 


व्यापार - वाणिज्य 

1. सिंधु सभ्यता में सिक्कों (मुद्रा) का प्रचलन नहीं  था, क्रय - विक्रय वस्तु - विनिमय के माध्यम से होता था | किसी भी पुरास्थल से मुद्रा के प्रमाण नहीं मिले है 

2. व्यापारिक वस्तुओं की गांठ पर शिल्पियों व व्यापारियों द्वारा अपनी मुहर की छाप लगाने की प्रथा थी | लोथल से इस तरह की कई मुहरबंदी मिली है | 

3. मोहनजोदङो से मिटटी की 2 पहियों वाली खिलौना गाड़ी, कांसे की दो पहियों वाली खिलौना गाड़ी एवं चन्हुदड़ो से मिटटी की 4 पहियों वाली खिलौना गाड़ी मिली है | लोथल से अलवेस्टर पत्थर का एक बड़ा पहिया व वणाबली से सड़कों पर बैलगाड़ी के पहिये के निशान मिले है |

4. मोहनजोदड़ो से प्राप्त एक मुहर पर नांव के चित्रांकनलोथल से प्राप्त मिटटी निर्मित खिलौना नांव से यह अनुमान होता है कि सिन्धुवासी आंतरिक व बाह्य व्यापार से मस्तूल वाली नावों का उपयोग करते थे | 

5. सिंधु सभ्यता के काल में पोत निर्माण एवं नावों द्वारा समुद्री व्यापार होने की पुष्टि लोथल से प्राप्त गोदीबाड़ा के साक्ष्य से होती है | पश्चिमी भारत एवं मकरान के तटवर्ती क्षेत्रों से ज्ञान सिंधु सभ्यता की बस्तियां संभवत: समुद्रपारीय व्यापारिक पड़ाव के रूप में स्थित बंदरगाह थीं | 

6. मेसोपोटामिया (ईराक) से व्यापारिक संपर्क स्थलसमुद्री दोनों मार्गों से था | सिंधु सभ्यता एवं मेसोपोटामिया से बीच होने वाले व्यापार में अफगानिस्तान और ईरान के क्षेत्रों की मध्यवर्ती भूमिका थी जबकि जल मार्ग से होने वाले व्यापार में फारस की खाड़ी में स्थित बहरीन द्वीप की मध्यवर्ती भूमिका थी |   

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Shailesh Shakya 
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