शकों का आक्रमण | पल्ल्व वंश | कुषाण वंश | कनिष्क | shakon ka aakramn | pallav vansh | kushan vansh | kanishk

विदेशी आक्रमण  

 शकों का आक्रमण | पल्ल्व  वंश  | कुषाण वंश  |  कनिष्क



भारतीय यूनानी (इण्डो - ग्रीक)


यवन कहाँ से आये थे?

 

उत्तर - पश्चिमी से पश्चिमी विदेशियों के आक्रमण मौर्योत्तर काल की सबसे महत्वपूर्ण राजनीतिक घटना थी | इनमें सबसे पहले आक्रान्ता थे बैक्ट्रिया के ग्रीक (यूनानी) जिन्हें प्राचीन भारतीय साहित्य में यवन कहा गया है 

 

  भारतीय सीमा में सर्वप्रथम प्रवेश करने का श्रेय डेमेट्रियस प्रथम को है | इसने 183 .पू. में पंजाब के कुछ भाग जीतकर साकल को अपनी राजधानी बनाया 

 

डेमेट्रियस के उपरान्त यूक्रेटाइड्स ने भारत के कुछ हिस्से जीतकर तक्षशिला को अपनी राजधानी बनाया 

 

मीनाण्डर (160 से 120 .पू.) सबसे प्रसिद्ध यवन  शासक था | यह सम्भवत: डेमेट्रियस कुल का था | उसने भारत  यूनानी सत्ता को स्थायित्व प्रदान किया 


 बौद्ध बनने वाला पहला इंडो यूनानी राजा कौन था?


 मीनाण्डर बौद्ध साहित्य  मिलिन्द के नाम से प्रसिद्ध है | सम्भवत: नागसेन ने इसे बौद्ध धर्म में दीक्षा दी थी | प्रसिद्ध बौद्ध ग्रन्थ मिलिन्दपन्हो में बौद्ध भिक्षु नागसेन एवं मीनाण्डर के वृहद वार्ता संकलित है | इसकी राजधानी साकल शिक्षा की प्रमुख केंद्र थी |    

 

स्ट्रैबो ने लिखा है कि यूनानियों ने गंगा नदी और पाटिलपुत्र तक आक्रमण किये

 

भारतीय सिक्कों पर पहले केवल देवताओं के चित्र ही अंकित रहते थे, उनका नाम या तिथि उत्कीर्ण नहीं की जाती थी | जब से उत्तर - पश्चिमी भारत पर बैक्ट्रिया के यूनानी राजाओं का शासन आरम्भ हुआ, सिक्कों पर राजाओं के नाम तिथियाँ उत्कीर्ण की जाने लगी

 

सर्वप्रथम इण्डो ग्रीक शासकों ने ही लेख वाले सिक्के (मुद्रालेख) तथा सोने के सिक्के जारी किये 

 

 मीनाण्डर की कांस्य मुद्राओं पर धर्म चक्र का चिन्ह मिलता है 

 

भारत पर यवनों का प्रथम आक्रमण पुष्यमित्र शुंग के समय हुआ था जिसका उल्लेख गार्गी संहिता (युग पुराण खण्ड) तथा मालिविकाग्निमित्र में हुआ है 

 

गान्धार एवं मथुरा की बुद्ध बोधिसत्वों की मूर्तियों पर यूनानी और रोमन कला का प्रभाव स्पष्ट दिखाई पड़ता है 


 

शकों का आक्रमण (Shakon ka aakramn)

 

शक वंश के संस्थापक कौन थे?


भारतीय स्त्रोतों में शकों को सीथियन नाम दिया गया है यूनानियों के बाद शक आये यूनानियों की अपेक्षा शकों का भारत के एक बड़े भाग पर नियंत्रण था 

 

भारत में शक राजा अपने आप को क्षत्रप कहते थे शक शासकों की भारत  में दो शाखाएं हो गई थीं 

1.  उत्तरी क्षत्रप -- जो तक्षशिला एवं मथुरा के थे 

2. पश्चिमी क्षत्रप -- जो नासिक एवं उज्जैन के थे 

 

नहपाल ने अपने सिक्कों में अपने को " राजा " लिखा था 

 

शकों का प्रसिद्ध शासक कौन था?


भारत में शकों का सर्वाधिक प्रसिद्ध राजा रुद्रदामन प्रथम (130 से 150 ई०) हुआ | जिसके राज्याधिकार में सिन्ध, कोंकण, नर्मदा घाटी, मालवा, काठियावाड़ और गुजरात का एक बड़ा भाग था 

 

रुद्रदामन ने गिरनार पर्वत पर स्थित काठियावाड़ के अर्द्धशुष्क क्षेत्र की प्रसिद्ध " सुदर्शन झील " की मरम्मत करायी | इस झील का निर्माण मौर्य काल में हुआ था | इसके समय सुराष्ट्र प्रान्त का शासक सुविशाख था

 

रुद्रदामन संस्कृत का बड़ा प्रेमी था | उसने ही सबसे पहले विशुद्ध संस्कृत भाषा में लम्बा अभिलेख (जूनागढ़ अभिलेख) जारी किया | पूर्व के जो भी लम्बे अभिलेख इस देश में पाए गये हैं, सभी " प्राकृत " भाषा में रचित है

 

रुद्रदामन ने अपने समकालीन शातकर्णी राजा (वशिष्ठी पुत्र पुलमावि) को दो बार हराया | परन्तु निकट सम्बन्धी होने के कारण उसे नष्ट नहीं किया

 

इस वंश (शक) का अंतिम शासक " रुद्रसिंह तृतीय " था | गुप्त शासक चन्द्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य ने उसे पराजित कर पश्चिमी क्षत्रपों के राज्य को अपने साम्राज्य में मिला लिया |  

 

 

हिन्द - पार्थियन या पहलव (pallav vansh)

 


  पश्चिमोत्तर भारत में शकों के आधिपत्य के बाद पार्थियाई लोगों का आधिपत्य हुआ

 

पार्थियाई लोगों का मूल निवास स्थान ईरान था भारतीय स्रोतों में इन्हें " पहलव " कहा गया है

 

पहलव वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली शासक " गोन्दोफर्निस " (20 से 41 ) था | खरोष्ठी लिपि में उत्कीर्ण " तख्तेबही अभिलेख " में इसे " गुदुव्हर " कहा गया हैफारसी में उसका नाम " बिन्दफर्ण " है जिसका अर्थ है " यश विजयी " |  

 

 गोन्दोफर्निस के शासन काल में " सेंट टामस " ईसाई धर्म का प्रचार करने के लिए भारत आया था | इसकी राजधानी " तक्षशिला " थी 

 

पार्थियन राजाओं के सिक्कों पर ध्रमिय (धार्मिक) उपाधि मिलती है उन्होंने " बौद्ध धर्म " ग्रहण कर लिया था

 

पहलव शक्ति का वास्तविक संस्थापक " मिथ्रेडेट्स प्रथम " था | भारत में पहला पार्थियन शासक माउस था | इस साम्राज्य का अन्त कुषाणों द्वारा हुआ

 

 

कुषाण वंश (kushan vansh)

 

कुषाण वंश का संस्थापक कौन था?


पार्थियाई लोगों के बाद कुषाण आये जिन्हें यूचि या तोचेरियन (तोखारी) भी कहा जाता है | इनका मूल निवास स्थान चीन की सीमा पर स्थित " चीनी तुर्किस्तान " था

 

कालान्तर में यूचि कबीला पाँच भागों में बँट गया था | इन्हीं में से एक कबीले ने भारत के कुछ भागों पर शासन किया 

 

1. कुजुल कडफिसस प्रथम 

 

कुषाणों के दो राजवंशों के बारे में जानकारी मिलती है जो एक के बाद एक आये | पहला राजवंश कडफिसस कहलाता है

 

कडफिसस प्रथम के प्रारम्भिक सिक्कों के मुख्य भाग पर यूनानी राजा हर्मियस की आकृति है और पृष्ठ भाग पर उसकी अपनी | इसका अर्थ है कि वह पहले यूनानी राजा हर्मियस के अधीन था

 

उसने रोमन सिक्को की नकल करके ताँबे के सिक्के ढलवाये तथा महाराजाधिराज की उपाधि धारण की 

 

2. विम कडफिसस द्व्तीय 

 

इसने सिन्धु नदी पार करके तक्षशिला और पंजाब पर अधिकार कर लिया 

 

सर्वप्रथम विम कडफिसस ने ही भारत में कुषाण सत्ता की स्थापना की | उसने बड़ी संख्या में सोने के सिक्के चलवाए | उसके बाद कुषाणों ने "सोने एवं ताँबे " के सिक्के जारी किये

 

यह शैव मत का अनुयायी था | इसके कुछ सिक्कों पर शिव, नदी तथा त्रिशूल की आकृतियाँ मिलती है | उसने महेश्वर की उपाधि धारण की

 

भारत में " सर्वप्रथम सोने के सिक्के " विम कडफिसस ने ही चलाए

 

3. कनिष्क (kanishk)


इसका समय 78 . के लगभग माना जाता है | यह इस वंश का महानतम शासक था

 

ह्वेनसांग के विवरण एवं चीनी ग्रन्थों से प्रकट होता है  कि गन्धार कनिष्क के अधीन था 

 

इतिहास में कनिष्क का नाम दो कारणों से प्रसिद्ध है | पहला उसने 78 ई० में एक संवत चलाया जो " शक संवत " कहलाया है आज भी यह संवत भारत सरकार द्वारा प्रयोग में लाया गया है | दूसरा उसने बौद्ध धर्म का मुक्त हृद्य से सम्पोषण एवं संरक्षण किया

 

72 ई०  में कश्मीर के कुण्डलवन में वसुमित्र की अध्यक्षता में चौथी बौद्ध संगीत हुई 

 

कनिष्क की प्रथम राजधानी पेशावर (पुरुषपुर) एवं दूसरी राजधानी मथुरा थी | कनिष्क ने कश्मीर को जीतकर वहाँ " कनिष्क " नामक नगर बसाया 

 

कनिष्क ने पेशावर में एक स्तूप और विहार का निर्माण कराया जिसमें बुद्ध के अस्थि - अवशेषों को प्रतिष्ठित कराया

 

 बौद्ध धर्म की महायान शाखा का अभ्युदय और प्रचार कनिष्क के समय में हुआ

 

3. हुविष्क 

 

 

106 से 138 ई० के समय कुषाण सत्ता का प्रमुख केन्द्र पेशावर से हटकर मथुरा पहुंच गया 

 

हुविष्क के सिक्कों पर शिव, स्कन्द तथा विष्णु आदि देवताओं की आकृतियाँ उत्कीर्ण मिलती हैं 

 

कनिष्क कुल का अंतिम महान सम्राट वासुदेव था

 

कुषाणों ने सर्वप्रथम भारत में शुद्ध स्वर्ण मुद्राएं निर्मित करायी तथा छोटे - छोटे व्यापार व्यवसाय के लिए ताँबे एवं चाँदी की मुद्राएं चलाई 

 

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Shailesh Shakya 
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